रिलेप्स होने के कारण(ट्रिगर्स) से बचने के उपाय
सोबर बने रहने के लिये पक्के इरादे के और भी बहुत कुछ चाहिये होता है। हमें सोबर बने रहने के लिये रिकवरी के रास्ते पर धैर्य और एक साफ़ सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। इसका मतलब ये है कि हमें ऐसे तरीके खोजने होंगे जिससे हम न फिसलें क्योंकि जीवन में गम और खुशी, अच्छी और बुरी या अन्य तरह की परिस्थितियाँ आती रहेंगी। इसे ऐसे भी समझें की हमें रिलेप्स करने वाले ट्रिगरों से बचना होगा।
जिनको सोबर रहते हुऐ कम समय हुआ है उनके लिये ये तरीके खोजना थोड़ा मुश्किल साबित हो सकता है और उनकी की रिकवरी के रास्ते पर की हुई सारी प्रगति पर पानी फिर जाता है। रिलेप्स को ट्रिगर करने वाली सारी चीजों से बचने के लिये व्यक्ति को एक पक्का प्लान तैयार बनाना चाहिये जिसमें हर स्थिति से निपटने का पैंतरा मौजूद हो।
ट्रिगर्स वो परिस्थिती या भावनाएं हो सकती हैं जिनके कारण व्यक्ति रिलेप्स हो जाता है। आइये इनके बारे में जानते हैं कि वो सामान्यत: क्या होते हैं और उनका सामना कैसे किया जाये।
ट्रिगर्स क्या होते हैं ?
ट्रिगर्स वो संकेत होते हैं जो हमें नशे की वस्तु चाहे वो शराब हो या कोई और ड्रग का तरफ तत्पर करते है। ये कभी-कभी इतने शक्तिशाली होते हैं कि हमारी रिकवरी में की गई कड़ी मेहनत कुछ समय में ही बर्बाद कर देते हैं। ट्रिगर कई तरह के होते हैं :
मनोवैज्ञानिक : ये ट्रिगर्स व्यक्ति के मन में दबे होते हैं और कभी-कभी हावी होतें हैं। जैसे पुराने/नये टुटे या खराब हुऐ रिश्ते, कोई गहरा सदमा, या किसी तरह की घटना जिससे मन को तकलीफ़ होती हो। इस समय व्यक्ति ऐसी भावनाऐं सहन करने के लिये नशे की ओर मुड़ सकता है।
दृश्य जो आप के सामने आते हैं : शराब या अन्य ड्रग का आपकी नज़रों के सामने बार-बार आना, चाहे वो व्यक्ति के घर में होता हो या बाहर जहाँ वह अपना समय व्यतीत करता हो। ऐसे नज़ारे व्यक्ति के मन में शराब या ड्रग्स के प्रति तलब जगा सकते हैं।
भावनात्मक : सोबर व्यक्ति अपने आसपास जो बदलाव देखता है तो उसे एहसास होता है कि उसने कितना कुछ खोया या बिगाड़ा है। इसके चलते वो कभ-कभार अवसाद, तनाव और बैचेनी महसूस करने लगता है। ऐसी परिस्थिति में वह उबरने के लिये नशे का सहारा ले सकता है।
पुरानी यादें : नशे के दौर से या जब आप एडिक्शन के जाल में नहीं थे, तब की खुशनुमा यादें भी रिलेप्स का कारण बन सकती हैं।
सामाजिक : इस परिस्थिति से तो करीब-करीब हर रिकवरी के रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति गुजरता है। खासकर शराब से तो आज-कल के रोजमर्रा के जीवन में हर व्यक्ति का सामना हो जाता है। शादीयों में, पार्टीयों में या किसी भी आयोजन में शराब का परोसा जाना आम बात है। ऐसे समय जब व्यक्ति अन्य लोगों को शराब के साथ आनन्द लेते हुऐ सामान्य जीवन जीते देखता है तो उसके मन में भी इच्छा उठ सकती है।
ये समझना बिलकुल भी मुश्किल नहीं है कि कोई भी सामान्य व्यक्ति रिकवरी के दौरान कितनी बार रोजमर्रा के जीवन में इन ट्रिगर्स का सामना करता होगा।
तरीके जिनसे व्यक्ति ट्रिगर्स का सामना कर अपनी रिकवरी को बचा सकता है :
क्या कोई भी व्यक्ति ट्रिगर्स पैदा करने वाली परिस्थितियों को रोक सकता है? तो सीधा जवाब है ‘नहीं’ क्योंकि आप सामान्य जीवन जीते हुऐ आस-पास होने वाली हर चीज़ को काबू नहीं कर सकते। पर हम थोड़ी समझदारी और प्लानिंग से अपनी रिकवरी को ऐसे ट्रिगर्स से बचा सकते हैं। हमारी संस्था निदान नशा मुक्ति केंद्र, भोपाल में बताये तरीके जो काम करते हैं वो निम्नलिखित हैं।
यहाँ बताई गई कुछ रणनीतियों को अपना कर व्यक्ति अपनी रिकवरी को बचा सकते हैं।
अपने ट्रिगर्स को पहचानना : अपने आप को रिलेप्स होने से बचाने के लिये प्लान बनाते समय व्यक्ति का सबसे पहला कदम खुद के ट्रिगर्स को पहचानने का होना चाहिये। ऐसा करने से व्यक्ति सोबर बने रहने के लिये अपनी प्रतिबध्दता को मजबूती से लागु कर पाता है। जब व्यक्ति अपने ट्रिगर संकेतों को पहचानने लगता है तो उन्हें टालने के लिये पहले से सुनिश्चित कदम आसानी के साथ उठा सकता है।
सीमाएँ निर्धारित करना : इसके आगे ट्रिगर्स के सामने खुद को कम से कम लाने की कोशिश करनी होगी। व्यक्ति को उन सभी पुराने दोस्तों का साथ छोड़ देना चाहिये या उनके साथ उठना-बैठना कम कर देना चाहिये जो नशा करते हों। इसके साथ हर संभव कोशिश करनी चाहिये की ऐसी जगह न तफरी करें जहाँ नशे का सेवन हो रहा हो।
सहायता तंत्र विकसित करना : अपने लिये मजबूत सहायता तंत्र (सपोर्ट नेटवर्क) स्थापित करने से आपको तब सहारा मिलता है जब भी ट्रिगर से आपकी रिकवरी खतरे में हो। ये कुछ उन चुनिंदा लोगों का समुह हो सकता है जो आपकी रिकवरी के आपको जिम्मेदार मान कर आपकी परवाह करते हो और जरुरत पड़ने पर भावनात्मक रुप से आपके साथ हों, ये समुह आपको हौसला प्रदान करता है जब भी आप कमज़ोर पड़ने लगते हैं।
व्यस्त रहें : जैसे की एक कहावत है “खाली दिमाग शैतान का घर होता है” उसी प्रकार नकारात्मक भावनाएं जिससे ट्रिगर्स होते हैं वो भी खाली समय में ही ज्यादातर जन्म लेती हैं। पर अच्छी बात ये है कि ट्रिगर का क्षण ज्यादा समय तक नहीं टिकता। जब भी आपको ऐसा लगे की आप नशे की ओर आकर्षित हो रहें हैं तो खुद को व्यस्त कर लें कोई किताब पढ़ें, जिम जाएं, जॉगिंग करें, कहीं घूमने चले जाएं या कुछ भी ऐसा करें जिस से आपका दिमाग उस सोच से अलग हो जाऐ।
अध्यात्म से जुड़ने का प्रयास करें : रिकनरी के रास्ते पर चलते हुऐ कुछ समय निकाल कर नियमित ध्यान का अभ्यास करें और अध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करें। आपको धीरे-धीरे पूर्णता का एहसास होने लगेगा और खुद को परमात्मा के ज्यादा करीब पायेंगे। ऐसा होते पर ट्रिगर के क्षणों का बेहतर ढंग से सामना कर पायेंगे और आपका दिमाग वर्तमान में केंद्रित रहेगा। ऐसा होने पर आप मुश्किल समय में भी विचलित नहीं होंगे और रीकवरी की राह से नहीं डगमगायेंगे।
रिकवरी की राह पर चौकस रहने से ही आप ट्रिगर्स को पहचान कर उनका सामना कर पायेंगे।